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Friday 31 August 2018

# संघर्ष #

ईश्वर की सत्ता को
झकझोर के हिलाया है
सूरज में आग लगा कर के
भोर को जगाया है

मुझ पे यक़ीं जो ना हो तो
जा पूछ समंदर की लहरों से
फूँक के इसके सीने में
तूफ़ाँ ये किसने उठाया है

आ देख कहाँ में रहता हूँ
सिर पे किसका साया है
दरकती ज़मीं के अंगारों बीच
ये आशियाँ मैंने बसाया है

मोह नहीं सब खोने का
जो मिली नहीं वो माया है
वयंग्य नहीं, अश्रुओं ने 
हृदय को आज हँसाया है

ये रात भले ही बाक़ी है
सूरज पे ग्रहण का साया है
साँसों के बवंडर से मैंने
रेगिस्तान में राह बनाया है

जो कहते थे मैं चूक चुका
फिर रहे वो नज़रें चुराये
थमा था साँसों में भरने ज़िंदगी
देख उड़ान समझ ये आया है

डरा था कौन तेज़ हवाओं से
आँधियों से चिराग़ जलाया है
फूँक समंदर के सीने में 
ये तूफ़ाँ मैंने उठाया है 



Tuesday 28 August 2018

#बर्फ़ीला अभिमान#

पर्वत शिखर पे, 
गर्वान्वित जमे,
जब चमकते हो
और हँसते हो
मुझ पे,
सोचता हूँ
कि हँसूँगा मैं भी,
ऐसे ही,
जब इसी चमक से
पिघलोगे बहोगे,
गिरोगे मेरे क़दमों में ।

अभिमान है
तुझे आज,
सर्वोच्च बिन्दू पे
स्थापित होने का ।
चकित है तू ,
अपनी चमक से
और मान बैठा है
ख़ुद को 
धरा का सिरमौर ।

आने को है वक़्त,
जानेगा तू सच,
निकलेगा इस भ्रम से,
कि तेरी ख़ासियत 
तेरी जड़ता है,
जहाँ जन्मा था,
आज तक वहीं पड़ा है ।

सर्द निष्ठुर 
तू ऐसा बना,
एक तिनका भी
दामन में न उग सका,
पर्वत की देह से,
सफ़ेद कफ़न सा
बस लिपटा रहा ।

तुझे अपने,
वो आँसू भी 
नहीं दिखते,
जो रिस रहे,
नालों का रूप
धर के,
बेख़बर समीप से,
पुलकित हो रहा,
सिर्फ़ हवाओं को
सर्द कर के

मौक़ा है अभी भी,
छोड़ ऊँचाइयाँ गर्वीली,
ज़मीं से आ मिल जा,
एक पवित्र पावन
गंगा बन जा ।





Monday 27 August 2018


#बेख़बर सफ़र में#

हम तो उस सफ़र में हैं 
जहाँ कोई हमसफ़र नहीं
क्या पूछते हो बात उनकी 
यहाँ हमें अपनी ख़बर नहीं

चुँधियाती है नज़र रौशनी में अब
अंधेरे उजालों से कोई कमतर नहीं
ज़िंदगी सिर्फ़ जुस्तजु, ज़ुनून, ज़ुल्म
मौत अब इतनी भी बदतर नहीं

उमड़ उठा है सैलाब दर्द का
ज़ख़्म मेरे सीने के भरे नहीं
तैयार बैठी हैं रोने को आँखें
दो बूँद आँसू भी मयस्सर नहीं

यक़ीन था तुझे जिस दुआ पे
बेजान पड़ी है तुझे ख़बर नहीं
फ़ना हो जाए बस एक नज़र से
तेरी निगाहों में अब वो असर नहीं

उजड़ा ठिकाना यहाँ से भी मेरा
जाऊँगा कहाँ कोई  फ़िकर नहीं
नज़रों में हया का बसेरा था जहाँ
अफ़सोस बचा अब वो शहर नहीं

                 (2018)

Saturday 25 August 2018

#उधारी ज़िंदगी#

मैंने कब कहा
ये ज़िंदगी
है मेरी ।
छोड़ गए थे
मेरे पास,
तो जी रहा था
बदहवास ।

मैंने कब कहा
कि ये खिलौने,
ये आँसू, ये हँसी
ये ग़म, ये ख़ुशी,
हैं मेरे
तू सौंप गया था
तो खेल रहा था ।

और जब आज
तुम रहे हो माँग
अपनी ज़िंदगी,
मैं कैसे दे दूँ
ऐसे हीं ।
कैसे दे दूँ
वे क्षण, वे पल,
जिन्हें जिया
अपना समझ,
कैसे दे दूँ
वे कोमल सपने,
वे नाज़ुक भावनाएँ,
जो चिपकी है
इस ज़िंदगी से ।

हाँ अगर कर सको
इन्हें अलग,
तो ले लो बेशक,
ज़िंदगी अपनी
पर लौटा दो मुझे
वो हिस्सा,
जो मेरे आँसुओं से
है भीगा ।

लौटा दो वे फूल
जो हैं खिले
मेरी मुस्कुराहट से,
लौटा दो वे काँटे
लड़खड़ाते क़दमों को मेरे,
कई बार संभाले जिसने।

लौटा दो वो मंज़र,
जब उस पे थी पड़ी
मेरी पहली बार नज़र,
जब चाहा था उसे
बेक़रार हो दिल ने,
जब लिया था नाम
उसने मेरा
मुस्कुरा के,
पलकें झुका के ।

जब पहली बार 
गिरा था मैं,
अपनी नज़रों में,
ढुलका था
पहली बूँद अश्क़ का
पलकों  से ।
चुपचाप ढल गया
था आसमान से,
जब मिलायी थी
आँखें सूरज से ।
लौटा दो वो रातें मेरी
जो जागते हुए कटी,
लौटा दो वो सुबह
जब पहली बार
मेरी हँसी गूँजी ।

लौटा दो वो सपने,
जो जागती 
आँखों से देखे,
लौटा दो वो
पन्ने सारे
ज़िंदगी के,
जो मैंने अपनी
साँसों से लिखे ।

जब तुम दे नहीं सकते,
मेरी अंगिनित अमानतें,
तो भला मैं,
लौटा दूँ कैसे,
तुम्हारी एक ज़िंदगी ।

(1997)








Thursday 23 August 2018


#कुछ नहीं कहीं भी#

नए सृजन की आस लिए 
पुराना सब तोड़ आया हूँ
पत्थरों के ढेर पे बैठा हूँ 
तराशने के औज़ार छोड़ आया हूँ

नया ना कुछ बन पाया
पुराने का कुछ बचा नहीं है
ज़िन्दगी बेतहाशा बीत रही
मक़सद का कुछ पता नहीं है

सारा सागर मथ लिया
विष अमृत की दो बूँदे भी न मिली
गागर प्याले सब ख़ाली हैं
शिव का भी कुछ पता नहीं है

रातों को आँखों में गुज़ारा
हर हर्फ़ को सीने में उतारा 
ख़त में मेरा ज़िक्र तो होगा 
या मुझसे अब कोई ख़फ़ा नहीं है

मुस्कुराहट पहचान की 
हर चेहरे से टपक रही
नाम मेरा उन्हें याद तो होगा
या अंजामे इश्क़ अब वफ़ा नहीं है

न जाने कब से धड़क रहा था 
तेरी ख़ुशबू में बहक रहा था
बेपरवाह यूँ ही हथेली पे रख दिया
दिल टूटने में तुम्हारी ख़ता नहीं है

घूमतीं हुई बेचैन बोझिल निगाहे 
टिकी चेहरे पे तेरे पल भर के लिए
ढूँढता फिर रहा हर भीड़ में तुझ को
उस रोज़ से अब तक कोई जँचा नहीं है

ख़बर न थी ऐसे गुम हो जाएगी
ख़्वाबों में आने से भी कतराएगी
तुझे दूँ क्या भेंट अंतिम विदाई में
पास मेरे अब कुछ बचा नहीं है

(2018)





Wednesday 22 August 2018

#सपनों की दुनिया#

रात हो चली
अब सोने चले
कि देखेंगे सपने
उनके
जो हमें ना मिले ।
कुछ वक़्त गुज़ारे
साथ उसके
मूँद आँखें
एक बार भी
देखा नहीं
जिसने नज़रें 
उठा के ।

लगा के मरहम
सपनों को
रोक लें
रिसने से
दिल के ज़ख़्मों को ।
आज रात आओ
हँस लें
ज़ोरों से
सुबह से तो आँसू
बिन पूछे
छलकेंगे ।

जीत आए
सारी कायनात
चलो आज की रात ।
दिखा दें
ज़माने को
गर्व भरा
सीना अपना
सुना दें सबको
अपनी बात ।
कि सुबह की
किरण के साथ ही
शुरू होने लगेगा
सिलसिला हार का ।

आओ जी लें
जी भर
इन सपनो 
में खो कर ।
उड़े आसमान
साँसों में नई
उमंग भर कर ।
कि सुबह
मरना भी पड़े
तो दिल में कोई 
अफ़सोस ना रहे ।

            (1997)







Tuesday 21 August 2018

#प्रहरी#

सर्द रात 
भीगी ज़मीं
ओस की 
बारिश को थामे
झूमते ये
पेड़ सारे
धूँध की चादर
को ओढ़े
कंपकंपा रही हवायें

फिर भी खड़ा
वो नज़रों को जमाए
सुन रहा
हर एक आहट
गरम कंबल 
की सिलवटों में
लेट नहीं सकता
वो पल भर
रौशनी होने न पाए
आग भला कैसे जलाए
जान जाएगा दुश्मन
कि खड़ा है वो यहाँ पर

अनजाने अपरिचित का भय
अंधेरे में भी
ढूँढ लेती है चेहरे
सुन लेती है
आहटें क़दमों की
हवायें जब खड़खड़ातीं
है पत्तियों को

और भला किसे मोह है
कौन चाहता है
सिलवटों में लिपटी
गर्माहट को
कि ना जाने
कौन सी 
सरकती पत्तियों में
मौत की आहट हो


Sunday 19 August 2018

#रात चाँद निगल गई#

चाँद को निकलते देखा
बादलों को चीर के
रख दिया था रक्त का रंग 
आसमां में बिखेर के

चाँदनी में थी नहाई 
हर डगर हर फ़िज़ा
शाम थी घबराई सी 
रात थी ख़फ़ा ख़फ़ा

रात और चाँद बीच 
द्वन्द था अधिकार का
रौशनी सा बिखर गया 
ख़ौफ़ अंधकार का

टिमटिमाते तारों ने भी
चाँद को दी थी चुनौती
दाग़ चेहरे का दिखा के
उसी रौशनी में ख़ुद नहाती

रात भर रात से लड़ता रहा 
इंतज़ार में भोर के दमकता रहा
अब चाँद अकेला थक चुका 
क्षितिज पे शिथल धूमिल पड़ा 

चाँदनी भी अब छोड़ चली
ना जाने किस आग़ोश गई
सो गया चाँद भी मूँद आँखें
आख़िरी किरण अब डूब चली

सब की नज़रों से छुपाके
अंधेरे को काजल बता के
उजाले स्याह कर गई
रात चाँद निगल गई

Saturday 18 August 2018

#तुम और मैं#

ये यादें है
जो की दिल से
जाती हीं नहीं
और एक तुम हो
कि पास आती 
भी नहीं

ये साँसें है मेरी
लिए ख़ुश्बू को तेरी
बुलाती है तुझे
ना जाने कब से
और एक तुम हो
कि अपने साँसों में भरे
ना जाने किसके
एहसास को,
मदहोश हो

मैंने तो कहा
एक बार ही तुझसे
कि खो जाए अंधेरों में
कुछ पल के लिए
और ना जाने तुम थाम
किसका हाथ
गुम हो गए
उजाले से पहले

ना वक़्त दिया 
कुछ कहने का
ना रुके तुम
कुछ सुनने के लिए
ये आँखें है मेरी 
जो ताक रही
तुम्हारा रास्ता तब से
एक तुम हो
कि जिसे याद ही नहीं
वो राहें
जिन पे हम चले थे कभी

बस मूँदी थी आँखें
कुछ पल के लिए
बहाना था
तुझे सताने का
और उन्ही चंद पलों में
तुम मुँह फेर चल दिए
मौक़ा भी दिया
बुलाने का

एक दिल है मेरा
जो धड़क रहा
दे रहा सदा
कि एक बार तो देखे
तू मुड़ कर पीछे
एक दिल है तेरा
जो पत्थर बना
अड़ा है जाने
किस ज़िद पे








Friday 17 August 2018


#मृत्यु पुनः दे गया जीवन#

कितनो को 
मरते देखा 
कितनी ही 
चिता जलाई 
पहली बार 
अग्नि लपटो से 
आँख नभ की 
भर आयी 

एक किसी का 
नहीं था वो
मिला सबसे
हँस के राहों में 
हृदय में प्रीत 
रहा बसाए
रखा लिहाज़ 
निगाहों में

अब कोई बात न
पहुँचेगी तुम तक,
तेरे नयनों से 
न बहेंगे नीर,
आवाज़ बूलन्द 
गूँजेगी फिर भी
दरिया पर्वत को 
लाँघ चीर

मौत न तुझसे 
जीतेगा कभी
इतना मुझको 
हमेशा था यक़ीं
जली देह 
पाया गगन
मृत्यु पुनः दे गया जीवन

Thursday 16 August 2018


#ईश्वर और मैं#

अपने ही बुने
जाल में
फँसा जा रहा हूँ
खेलने को जो 
बनाए थे फंदे
उनमें ही कसा जा रहा हूँ

ईश्वर की तरह
कि बनाई थी
जिसने दुनिया
अपने मनोरंजन के लिए
और सजाया था जिसे
विदुषकों से
ख़ुद बैठा ऊपर
बन निर्देशक
धागों को 
हाथों में थाम
ख़ुश था देख
कठपुतलियों का नाच

वह बे फ़िकर 
बैठा रहा ऊपर
धागे नीचे
गुथने लगे
एक जाल सा
बुनने लगे
फिर कब अलग हुई
उन धागों से मूर्तियाँ
सर्वज्ञ को पता ही न चला
उसके हाथों में सिर्फ़
एक जाल रह गया

अब वे कठपुतलियाँ 
नाचतीं है
औरों के इशारे पे
और ईश्वर बेचारा 
उलझा हुआ है 
बेबसी के जालों में

सबसे बड़ा विदूषक
वह ख़ुद बन गया है
अलग अलग दर्शकों
के सामने
अलग अलग अभिनय
कर रहा है
मेरी तरह
जिसने ज़िंदगी को
एक नाटक बनाया
और पात्र 
अपने चाहने वालों को

अब वो चाहत
बदल रही नफ़रत में
अलग अलग रूप
बन रहा मेरा
अलग अलग नज़रों में
ईश्वर की तरह.....

Wednesday 15 August 2018

#शहादत का सच#

जो सरदार थे 
वो वीर हो गए
सिपाही वहीं कहीं 
शहीद हो गए
कुछ इस अदा से 
सुनाई कहानी
उस रणछोर के 
सब मुरीद हो गए 

जो गोलियों से 
बच गए
वो व्यंग्य से 
घायल हुए
जो तमाशबीन बन 
खड़े रहे
तमाशे के उनके 
सब क़ायल हुए

रात को किया 
रौशन जिसने
भूले सब उसको 
होते ही भोर
छुपा था बिल में 
अंधेरे से डर के
अब घूम रहा 
बन सूरज चारों ओर

पहुँचा है  जो सच
ज़माने तक
उनकी है ज़ुबाँ
जो नहीं थे वहाँ
पर जिसे परवाह नहीं
हो जान की
उसे फ़िक्र क्या 
काग़ज़ों पे छपे नाम की

इतना है कि बहे ख़ून के
हर क़तरे में छुपी
कितनी ही अनकही
अनसुनी कहानियाँ है
महफ़िलें जो आज 
रौशन है तेरे आगे 
पीछे ना जाने 
कितनो की लुटी जवानियाँ  

Tuesday 14 August 2018

# मोह ज़िंदगी का#

मोह ज़िंदगी का

अंत तक बना रहा
सामान संसार का लिए
बाज़ार भी सजा रहा

देह की चिता अभी जली नहीं

रूह की व्यथा नसों से बही नहीं
काल के षड्यन्त्र से 
आशियाँ मेरा बसा रहा

हर गुज़रते वक़्त का

जश्न मनाता रहा
चढ़ती उतरती साँस से
ख़ुद को फुसलाता रहा

भ्रम है कि जाल है 

साँसों का अर्थ ढूँढता रहा 
दर्द को दवा जान कर
हर ज़ुल्म को सहता रहा

दर्द था, थी आपबीती 

हर आयाम से समझता रहा
जानता था कोई ना सुनेगा
मैं बेवजह अथक कहता रहा

वक़्त का कगार है

साँस गुजरती बयार है
उसके आने की आस में
यूँ ही राह तकता रहा

मंज़िल मौत की

आँखों के सामने थी
बेवजह सवालों में उलझा
ज़िंदगी को ठगता रहा

मोह ज़िंदगी का

अंत तक बना रहा
सामान संसार का लिए
बाज़ार भी सजा रहा