Saturday, 21 October 2023

 ख़ामोशियों  का शोर 


ख़ामोशियों  ने  शोर  कर  रखा  है 

अंधेरों  ने  भोर  कर  रखा  है 

टूट  के  बिखर  जाता  मैं  कब  का 

रुसवाइयों  ने  दिल  जोड़ कर  रखा  है 


मजबूरियों  को  तो  छोड़  दिया  कब  के 

चाहतों  ने  कमजोर  कर  रखा  है 

ख्वाब  मुझे  सोने  नहीं  देते  और 

हकीकतों  ने  मदहोश  कर  रखा  है 


दुश्मनों  में  कहाँ  इतनी  संजीदिगी  

अपनों  ने  सितम बेजोड़ कर रखा है 

दवाओं  से जख्म  हरे  हुए  जाते  है  

और दवाओं  ने  बेहोश कर रखा है 


फ़क़त खुद  से  खुद  की  पर्दादारी है 

वैसे  तमाशा तो अब हर और हो रखा  है 

ज़िन्दगी  मुँह  छुपाती फिर  रही  यंहा  

कातिलों ने खुद को सरफ़रोश कर रखा है