Monday, 22 April 2019

#पिता-सुता#

क्यूँ उसके 
युवा यक़ीन को,
अपने अनुभवों से
मात दूँ,
उसके सच की उम्र,
ज़्यादा बची नहीं अब,
पर ख़ुद को फुसलाते,
लगता है कुछ दूर
और साथ दूँ

मेरा अक़्स 
दिखता है उसमें,
जब भी बोलती है 
वह तान भवें,
गर्दन की अकड़न
भी ठीक वैसी ही है,
अभी आदर्श उसके
मिलावटी नहीं हुए

डरता हूँ 
उस दिन से,
जब लगेगी 
पहली ठोकर,
क्या संभल पायेगी 
वो ख़ुद से,
या गिर पड़ेगी 
लड़खड़ाकर

समझ में आता नहीं,
छोड़ूँ हाथ उसका
किस मुक़ाम पर
या साथ चलता रहूँ
शाम के साये की तरह,
छुप छुपाकर

मेरा अंश है वो,
उसकी आशाओं का
ध्वंस नहीं देख सकता,
पिता हूँ,
सुता के ख़ातिर

मैं तटस्थ नहीं रह सकता