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Tuesday 3 December 2019

#कमबख़्त बेपरवाह हो गई है#

मिली क्या मौत से ज़िंदगी एक़बार
बड़ी बेख़ौफ़ बेबाक़ हो गई है
ख़फ़ा ख़फ़ा, ज़ुदा ज़ुदा सी रहती थी
मुस्कुराते हुए अब पास हो गई  है 

मिली हर दफ़ा, पुकारा जब भी मैंने
मिलूँ फिर एक बार, यही चाह रह गई है
आग़ोश में कभी उसकी साँसों का बसेरा था
अब फ़क़त ख़ूबसूरत सी एहसास रह गई है

हाँफता भागता छू लेने की चाह लिए
साँसों की मिल्कियत फ़ना हो गई है
शामिल हुए भी नहीं, जाना था जिस सफ़र में
मंज़िल धूएँ में और सामने चौराह रह गई है

हुई मुद्दत कि तलाश में थे उसके
बिन मिले मोहब्बत बेपनाह हो गई है
कल मिली आख़िर, दूर महफ़िल के शोर से
पूछा नहीं हालेदिल, कमबख़्त बेपरवाह हो गई है

मिली क्या मौत से ज़िंदगी एक़बार

बड़ी बेख़ौफ़ बेबाक़ हो गई है......

Thursday 5 September 2019


कुछ मसले कभी हल नहीं होते
दिल में कसक सी रह जाती है
बस माथे पे बल नहीं पड़ते

टूटता है बिखरता है 
फिर मचल पड़ता है
दिल की साज़िशों में ख़लल नहीं पड़ते 

रोटी कपड़ा मकान 
फ़ेहरिस्त में ये भी शामिल है 
मेरे ख़्वाबों में तुम ही हर पल नहीं रहते

जो रह गए गिले शिकवे
आओ आज अभी निपटा ले 
मेरे तारीख़ के पन्नो में कल नहीं रहते 

दिन के उजालों की
दोस्ती रही हमारी 
हम उनकी नींदों में दख़ल नहीं देते 

मिलते है जब भी
मुस्कुरा देते हैं यूँ ही
हम आज भी उनके ख़यालों में बसर नहीं करते 

बेपरवाह अंजाम से
फ़ैसला कर ही लेते हैं
हम अब जगहँसाई की फ़िकर नहीं करते

कुछ मसले कभी हल नहीं होते
दिल में कसक सी रह जाती है
बस माथे पे बल नहीं पड़ते





Monday 22 April 2019

#पिता-सुता#

क्यूँ उसके 
युवा यक़ीन को,
अपने अनुभवों से
मात दूँ,
उसके सच की उम्र,
ज़्यादा बची नहीं अब,
पर ख़ुद को फुसलाते,
लगता है कुछ दूर
और साथ दूँ

मेरा अक़्स 
दिखता है उसमें,
जब भी बोलती है 
वह तान भवें,
गर्दन की अकड़न
भी ठीक वैसी ही है,
अभी आदर्श उसके
मिलावटी नहीं हुए

डरता हूँ 
उस दिन से,
जब लगेगी 
पहली ठोकर,
क्या संभल पायेगी 
वो ख़ुद से,
या गिर पड़ेगी 
लड़खड़ाकर

समझ में आता नहीं,
छोड़ूँ हाथ उसका
किस मुक़ाम पर
या साथ चलता रहूँ
शाम के साये की तरह,
छुप छुपाकर

मेरा अंश है वो,
उसकी आशाओं का
ध्वंस नहीं देख सकता,
पिता हूँ,
सुता के ख़ातिर

मैं तटस्थ नहीं रह सकता

Monday 4 March 2019

# कब तक भला किसके लिए #

जमीं सारी बंजर पड़ी,
रास्ते काँटे भरे,
पर्वत सीना तान,
राह रोके खड़े हुए,
नदी भी इठलाती मचलती,
बहती रही,
रूकती नहीं एक पल के लिए,
वो लड़ता रहा सोचता रहा,
कब तक भला किसके लिए

लोगों की क्या बात करे,
सर्द हवायें भी दुदकार रही,
धरती पे कैसी ये जन्नत है,
हर वक़्त सिर्फ़ मौत,
पुकार रही,
बँधे हाथ और होंठ सिले,
वो लड़ता रहा सोचता रहा,
कब तक भला किसके लिए

अपने पराए की क्या पहचान,
घूरती निगाहें पहने नक़ाब,
पत्थरों का बारूद से,
क्या दे जवाब,
अपनी साँसों में
ज़िंदगी का भरोसा लिए,
वो लड़ता रहा सोचता रहा,
कब तक भला किसके लिए

निकला जब भी वर्दी पहने,
यही ख़याल रहता दिल में,
लौटे शायद जब अपने घर को,
तिरंगे में ना हों लिपटें,
क्षत विक्षत सारे सपने,
आशंकित सोच झटकते हुए
वो लड़ता रहा सोचता रहा
कब तक भला किसके लिए.......





Saturday 26 January 2019

#श्रद्धांजलि# ज़िंदगी क्षमा करो इस बार ...मिलेंगे फिर किसी अगले राह ..कि इस सफ़र के लिए माँग लिया है मैंने  ...साथ मौत का ....अब कुछ पल चलूँ इसके संग ....कि देखूँ मेरी जीत पे अबकी कैसी होती है जश्न ...जानूँ तो इस दफ़ा किसने निभाई वफ़ा ...कौन मुँह मोड़ चल दिया  बेग़ानो सा ...कि चाहता हूँ यह भी इस बार... हो आँसुओं की भी बरसात ...फूलों के साथ ..कि संग लिए चला हूँ ...ज़िंदगी का ज़हर ...कि इस जीत के साथ ही  ...ख़त्म हो जाए मेरा हर सफ़र.....   

Friday 18 January 2019

ख़ुदा ही मिला विसाल--सनम 

अब कह ही दो,
तुम किस तरफ़ हो ?
शामिल हो 
गर्दिश में मेरे,
या बेपरवाह 
यूँ ही खड़े हो ?

कुछ बातें बाँटी थी
ख़िलाफ़ ख़ुदा के
कल तुमसे,
भरोसे के साथ
कि दिल में तेरे,
वे रहेंगी दफ़न

अब गूँज रहे हैं
ज़माने भर में,
हर हर्फ़ 
उस गुफ़्तगू के,
मुझे तो,
ख़ुदा ही मिला 
विसाल--सनम