कुछ मसले कभी हल नहीं होते
दिल में कसक सी रह जाती है
बस माथे पे बल नहीं पड़ते
टूटता है बिखरता है
फिर मचल पड़ता है
दिल की साज़िशों में ख़लल नहीं पड़ते
रोटी कपड़ा मकान
फ़ेहरिस्त में ये भी शामिल है
मेरे ख़्वाबों में तुम ही हर पल नहीं रहते
जो रह गए गिले शिकवे
आओ आज अभी निपटा ले
मेरे तारीख़ के पन्नो में कल नहीं रहते
दिन के उजालों की
दोस्ती रही हमारी
हम उनकी नींदों में दख़ल नहीं देते
मिलते है जब भी
मुस्कुरा देते हैं यूँ ही
हम आज भी उनके ख़यालों में बसर नहीं करते
बेपरवाह अंजाम से
फ़ैसला कर ही लेते हैं
हम अब जगहँसाई की फ़िकर नहीं करते
कुछ मसले कभी हल नहीं होते
दिल में कसक सी रह जाती है
बस माथे पे बल नहीं पड़ते