Tuesday, 14 August 2018

# मोह ज़िंदगी का#

मोह ज़िंदगी का

अंत तक बना रहा
सामान संसार का लिए
बाज़ार भी सजा रहा

देह की चिता अभी जली नहीं

रूह की व्यथा नसों से बही नहीं
काल के षड्यन्त्र से 
आशियाँ मेरा बसा रहा

हर गुज़रते वक़्त का

जश्न मनाता रहा
चढ़ती उतरती साँस से
ख़ुद को फुसलाता रहा

भ्रम है कि जाल है 

साँसों का अर्थ ढूँढता रहा 
दर्द को दवा जान कर
हर ज़ुल्म को सहता रहा

दर्द था, थी आपबीती 

हर आयाम से समझता रहा
जानता था कोई ना सुनेगा
मैं बेवजह अथक कहता रहा

वक़्त का कगार है

साँस गुजरती बयार है
उसके आने की आस में
यूँ ही राह तकता रहा

मंज़िल मौत की

आँखों के सामने थी
बेवजह सवालों में उलझा
ज़िंदगी को ठगता रहा

मोह ज़िंदगी का

अंत तक बना रहा
सामान संसार का लिए
बाज़ार भी सजा रहा

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