Friday, 31 August 2018

# संघर्ष #

ईश्वर की सत्ता को
झकझोर के हिलाया है
सूरज में आग लगा कर के
भोर को जगाया है

मुझ पे यक़ीं जो ना हो तो
जा पूछ समंदर की लहरों से
फूँक के इसके सीने में
तूफ़ाँ ये किसने उठाया है

आ देख कहाँ में रहता हूँ
सिर पे किसका साया है
दरकती ज़मीं के अंगारों बीच
ये आशियाँ मैंने बसाया है

मोह नहीं सब खोने का
जो मिली नहीं वो माया है
वयंग्य नहीं, अश्रुओं ने 
हृदय को आज हँसाया है

ये रात भले ही बाक़ी है
सूरज पे ग्रहण का साया है
साँसों के बवंडर से मैंने
रेगिस्तान में राह बनाया है

जो कहते थे मैं चूक चुका
फिर रहे वो नज़रें चुराये
थमा था साँसों में भरने ज़िंदगी
देख उड़ान समझ ये आया है

डरा था कौन तेज़ हवाओं से
आँधियों से चिराग़ जलाया है
फूँक समंदर के सीने में 
ये तूफ़ाँ मैंने उठाया है 



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