Sunday, 12 August 2018

#चाँद की तलाश में रोटियाँ गँवा आया#


क्यूँ रो रहा
कि चाँद सितारे ना मिले
बाँहें पसारी
वो गले ना लगे

क्या ज़रूरत है तुम्हे
इन खिलौनों की 
कि तेरी उम्र भी 
अब खेलने की रही

फिर दाम भी तो ना है
तेरे पास इनके
की यूँ ना मिलते
तो ले आते ख़रीद के

और छिनना तुमने 
सीखा नहीं
चुराना भी तुम्हें
आता नहीं

पास तेरे सिर्फ़ एक ज़िद है
पर उसकी भी तो हद है
तुझे चाँद क्या, पूरी रोटी भी
मिल जाए तो बहुत है





4 comments:

  1. Seems you got through enough conundrum by yourself. Amazing stuff you publish.

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    1. Thanks Sir...your appreciation means a lot

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