Thursday, 9 August 2018

#आज मेरी बारी#

तलाश मंज़िल की किसे है अब
साँसों का कारवाँ बस यूँ ही जारी है
कल पत्थरों का निशाना कोई और होगा
आज मेरे ज़ख़्मों के रिसने की बारी है

जाने किस सफ़र पे निकल पड़ी है ज़िंदगी
हर क़दम ठोकरों का सिलसिला जारी है
कल किसी और के अरमानों की अर्थी उठेगी
आज मेरे ख़्वाबों के बिखरने की बारी है

हर मुस्कुराहट में छुपी है एक दर्द की दास्ताँ
ग़म को ठहाकों से दफ़नाने की कोशिश जारी है
कल किसी और की हँसी कुरेदेगी नए ज़ख़्म
आज मेरे आँसुओं के सिसकने की बारी है

         

No comments:

Post a Comment