Wednesday, 3 October 2018

# साथी ज़िंदगी के #

अकेले नहीं आयी
यह ज़िंदगी
साथ है इसके 
और कई 

हँसी है प्रीत है
सुख है गीत है
और साथ में खड़े 
हाँथ बाँधे, नज़रें झुकाए 
है द्वेष, दुःख, आँसू भी 

पर ये तो
प्रतिपल परिवर्तित 
होते हुए, ज़िंदगी से 
कभी दूर तो कभी पास
हैं खड़े रहते

अधीर हुआ मन
बदल लिया तब
दुःख को गीत से
आँसू को प्रीत से
द्वेष को मीत से 
ये कहीं भी, कभी भी
शाश्वत नहीं

पर वो,
साथ जन्मा है जो ज़िंदगी के
अभी तक पास है उसी के
हँसा जब भी ज़ोर से
बीच में ही टोका उसने
आँसुओं को भी
अविरल बहने से रोका उसने

उसकी प्रीत मेरा गीत
हैं बँधे सभी उसी से
कण कण है व्यस्त 
उसी के ख़िदमत में
क्षण क्षण हो रहा व्यतीत
उसी की चाह से
भटक रही है ज़िंदगी
उसी के दिखाए राह में 

वो देन हैं, या फिर
ईश्वर की चूक
ये अंगिनित आँकक्षाएँ 
यह अमिट भूख

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