Sunday, 28 October 2018

#संघर्षरत#

हर एक राह से
गुज़रना होगा,
कि किस राह परे
है मंज़िल,
हर विष बूँद को
पीना होगा,
कि किस बूँद 
में छिपा है अमृत ।

अब झुलसे बिना
इस आग में,
निखरने को नहीं
है ज़िंदगी,
अब खोए बिना
स्याह रात में,
दिखने को नहीं
है रौशनी ।

हर रात अब
जागना होगा,
कि कब आ रही
है चाँदनी,
हर धड़कनों को
रोकना होगा,
कि कहाँ गूँज रही
है रागिनी ।

अब पिये बिना
आँसुओं को,
मिलने को नहीं
है ख़ुशी,
अब दफ़नायें बिना
संवेदनाओं को,
आने को नहीं
है हँसी ।

हर ज़िंदगी को
मरना होगा,
कि किस मौत में
छुपा है जीवन,
हर एक नयन
होगा झाँकना,
कि कहाँ तैर रहा
है रुदन

अब तेरे आये बिना
इस संसार,
मिलने को नहीं
है राह,
अब बिना बरसे
नयनों के तेरे,
बुझने को नहीं
है ये आग 


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