#कमबख़्त बेपरवाह हो गई है#
मिली क्या मौत से ज़िंदगी एक़बार
बड़ी बेख़ौफ़ बेबाक़ हो गई है
ख़फ़ा ख़फ़ा, ज़ुदा ज़ुदा सी रहती थी
मुस्कुराते हुए अब पास हो गई है
मिली हर दफ़ा, पुकारा जब भी मैंने
मिलूँ फिर एक बार, यही चाह रह गई है
आग़ोश में कभी उसकी साँसों का बसेरा था
अब फ़क़त ख़ूबसूरत सी एहसास रह गई है
हाँफता भागता छू लेने की चाह लिए
साँसों की मिल्कियत फ़ना हो गई है
शामिल हुए भी नहीं, जाना था जिस सफ़र में
मंज़िल धूएँ में और सामने चौराह रह गई है
हुई मुद्दत कि तलाश में थे उसके
बिन मिले मोहब्बत बेपनाह हो गई है
कल मिली आख़िर, दूर महफ़िल के शोर से
पूछा नहीं हालेदिल, कमबख़्त बेपरवाह हो गई है
मिली क्या मौत से ज़िंदगी एक़बार
बड़ी बेख़ौफ़ बेबाक़ हो गई है......
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