सरहद पे खड़ा
ढूँढता हूँ वतन मेरा
फेरूँ नज़र जिस तरफ़ भी
उजड़ा पड़ा है
चमन मेरा
मर के भी न मिली
मिल्कियत ज़मीं की
इस ओर रूह
उस तरफ़ जिस्म
दफ़न है मेरा
सफ़ेद कफ़न में लिपटी
लाश मेरी
जर्द आँखों से
दुआ माँग रही...
गर काग़ज़ों की क़िल्लत
स्याही का सूखा पड़ा है
मेरे लहू से ही मुर्दा जिस्म पे
लिख दो फ़रमाने अमन मेरा
जला दो यहीं
सूखी पत्तियों टहनियों से
गर ख़ाके क़ब्र नहीं
नसीब मेरे....
हक़ था मेरा भी
इस जमी के टुकड़े पे
टूट जाए अब
यह भी भरम मेरा
वाह
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
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Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 19
ReplyDeleteनवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
धन्यवाद यशोदा जी
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteमर के भी न मिली
ReplyDeleteमिल्कियत ज़मीं की
इस ओर रूह
उस तरफ़ जिस्म
दफ़न है मेरा
बहुत ही लाजवाब हृदयस्पर्शी सृजन
धन्यवाद सुधा जी
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