Wednesday, 17 February 2021

किस चिराग़ को आँधी से वफ़ा चाहिए


प्यार करने का जुर्म किया है मैंने,

अब दिल टूटने की सज़ा चाहिए ।

यह  ज़िंदगी जी ली है  ख़ूब मैंने,

अब मौत आए ऐसी दुआ चाहिए ।


चौंधिया गई है आँखें इस रौशनी में,

अब  रात  हो  तो कुछ सुकून मिले ।

लगता है नये ज़ख़्मों का दौर बीत चुका है,

अब पुराने दर्द उठे ऐसी दवा चाहिए ।


यक़ीं नहीं तेरा ग़म मुझे अब भी है ,

कि अपने रोने पे अब आती है हँसी ।

हर जोड़ तो बन्धनों का खुल चुका है,

अब किस चिराग़ को आँधी से वफ़ा चाहिए ।


ये यादें बड़ी ज़ालिम है जाती ही नहीं,

कि क़ब्र खोदूँ और दफ़ना दूँ इन्हें यहीं ।

जमा हो गये हैं कई दर्द इस सीने में,

अब तो ख़ुद के लुटने का मज़ा चाहिए ।


हर शाम की तरह यह शाम भी उदास है,

अब कौन मनाये इस नासमझ रूठे को ।

बढ़ते हैं क़दम कि ख़त्म कर दूँ मैं सब कुछ, 

पर इस बार भी मुझे तेरी रजा चाहिए ।

5 comments:

  1. ये यादें बड़ी ज़ालिम है जाती ही नहीं,
    कि क़ब्र खोदूँ और दफ़ना दूँ इन्हें यहीं ।
    जमा हो गये हैं कई दर्द इस सीने में,
    अब तो ख़ुद के लुटने का मज़ा चाहिए ।
    विकल मन के मर्मान्तक भावों को उकेरती रचना प्रिय राजीव जी |हार्दिक शुभकामनाएं|

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद आपका रेणु जी।

      Delete
  2. काफ़ी अरसे बार नज़र आये आप |

    ReplyDelete
    Replies
    1. वही रोज़ की जद्दोजहद। बहरहाल कोशिश रहेगी निरंतरता बनाए रखने की।

      Delete
  3. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete