प्यार करने का जुर्म किया है मैंने,
अब दिल टूटने की सज़ा चाहिए ।
यह ज़िंदगी जी ली है ख़ूब मैंने,
अब मौत आए ऐसी दुआ चाहिए ।
चौंधिया गई है आँखें इस रौशनी में,
अब रात हो तो कुछ सुकून मिले ।
लगता है नये ज़ख़्मों का दौर बीत चुका है,
अब पुराने दर्द उठे ऐसी दवा चाहिए ।
यक़ीं नहीं तेरा ग़म मुझे अब भी है ,
कि अपने रोने पे अब आती है हँसी ।
हर जोड़ तो बन्धनों का खुल चुका है,
अब किस चिराग़ को आँधी से वफ़ा चाहिए ।
ये यादें बड़ी ज़ालिम है जाती ही नहीं,
कि क़ब्र खोदूँ और दफ़ना दूँ इन्हें यहीं ।
जमा हो गये हैं कई दर्द इस सीने में,
अब तो ख़ुद के लुटने का मज़ा चाहिए ।
हर शाम की तरह यह शाम भी उदास है,
अब कौन मनाये इस नासमझ रूठे को ।
बढ़ते हैं क़दम कि ख़त्म कर दूँ मैं सब कुछ,
पर इस बार भी मुझे तेरी रजा चाहिए ।
ये यादें बड़ी ज़ालिम है जाती ही नहीं,
ReplyDeleteकि क़ब्र खोदूँ और दफ़ना दूँ इन्हें यहीं ।
जमा हो गये हैं कई दर्द इस सीने में,
अब तो ख़ुद के लुटने का मज़ा चाहिए ।
विकल मन के मर्मान्तक भावों को उकेरती रचना प्रिय राजीव जी |हार्दिक शुभकामनाएं|
धन्यवाद आपका रेणु जी।
Deleteकाफ़ी अरसे बार नज़र आये आप |
ReplyDeleteवही रोज़ की जद्दोजहद। बहरहाल कोशिश रहेगी निरंतरता बनाए रखने की।
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