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Wednesday 18 November 2020

बेखबर दरबदर

 सरहद पे खड़ा

ढूँढता हूँ वतन मेरा

फेरूँ नज़र जिस तरफ़ भी

उजड़ा पड़ा है

चमन मेरा


मर के भी न मिली

मिल्कियत ज़मीं की

इस ओर रूह 

उस तरफ़ जिस्म

दफ़न है मेरा


सफ़ेद कफ़न में लिपटी

लाश मेरी

जर्द आँखों से

दुआ माँग रही...


गर काग़ज़ों की क़िल्लत

स्याही का सूखा पड़ा है

मेरे लहू से ही मुर्दा जिस्म पे

लिख दो फ़रमाने अमन मेरा


जला दो यहीं

सूखी पत्तियों टहनियों से

गर ख़ाके क़ब्र नहीं

नसीब मेरे....


हक़ था मेरा भी

इस जमी के टुकड़े पे

टूट जाए अब 

यह भी भरम मेरा 














9 comments:

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    1. धन्यवाद आपका

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    2. This comment has been removed by the author.

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 19
    नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. धन्यवाद यशोदा जी

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  3. मर के भी न मिली

    मिल्कियत ज़मीं की

    इस ओर रूह

    उस तरफ़ जिस्म

    दफ़न है मेरा

    बहुत ही लाजवाब हृदयस्पर्शी सृजन

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    1. धन्यवाद सुधा जी

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