#बाज़ार#
सब कुछ यहाँ,
आज बिका है ।
जिस्म बिकी है,
जान बिका है ।
तेरे साथ मेरा भी,
ईमान बिका है ।
ईश्वर का ,
प्रसाद बिका है ।
माँ का भी,
आशीर्वाद बिका है ।
आँसू भी अब पूछ रहे,
अब कौन सा,
तेरा अरमान बिका है ।
सपनों का ,
बाज़ार लगा है ।
ख़्वाबों का,
व्यापार हुआ है ।
जो चाहत तेरी,
वो मुझे मिला ।
जो तुझे मिला,
वो मुझसे है छिना ।
अदलाबदली खेलो का खेला,
जब ख़त्म हुआ,
मैं फिर से अकेला ।
सरपट सरपट ,
दौड़ चली है ।
ज़िंदगी भी,
कैसी मनचली है ।
रुकने को कहूँ,
तो उड़ जाती है ।
सपने जो देखूँ ,
तो सो जाती है ।
उस से मेरी,
अब ना बन पाएगी,
चंचल है,
ज़रूर छलेगी ।
मंज़िल का ठिकाना,
हो और कही,
वो तो अपने ही,
राह चलेगी ।
ईश्वर का ,
ReplyDeleteप्रसाद बिका है ।
माँ का भी,
आशीर्वाद बिका है ।
आँसू भी अब पूछ रहे,
अब कौन सा,
तेरा अरमान बिका है ।////
यूँ तो सारी रचना लाजवाब है राजीव जी पर ये पंक्तियाँ विशेष तौर पर मन को छू गयी | बहुत दिनों के बाद कुछ लिखा और बढिया लिखा | आशा है लेखन नियमित रहेगा |
धन्यवाद आपका रेणु जी। नियमित लेखन की कोशिश रहेगी।
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