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Thursday, 5 August 2021

 #बाज़ार#

सब कुछ यहाँ,

आज बिका है ।

जिस्म बिकी है,

जान बिका है ।

तेरे साथ मेरा भी,

ईमान बिका है ।


ईश्वर का ,

प्रसाद बिका है ।

माँ का भी,

आशीर्वाद बिका है ।

आँसू भी अब पूछ रहे,

अब कौन सा,

तेरा अरमान बिका है ।


सपनों का ,

बाज़ार लगा है ।

ख़्वाबों का,

व्यापार हुआ है ।

जो चाहत तेरी,

वो मुझे मिला ।

जो तुझे मिला,

वो मुझसे है छिना ।

अदलाबदली खेलो का खेला,

जब ख़त्म हुआ,

मैं फिर से अकेला ।


सरपट सरपट ,

दौड़ चली है ।

ज़िंदगी भी,

कैसी मनचली है ।

रुकने को कहूँ,

तो उड़ जाती है ।

सपने जो देखूँ ,

तो सो जाती है । 

उस से मेरी,

अब ना बन पाएगी,

चंचल है,

ज़रूर छलेगी ।

मंज़िल का ठिकाना,

हो और कही,

वो तो अपने ही,

राह चलेगी ।















2 comments:

  1. ईश्वर का ,
    प्रसाद बिका है ।
    माँ का भी,
    आशीर्वाद बिका है ।
    आँसू भी अब पूछ रहे,
    अब कौन सा,
    तेरा अरमान बिका है ।////
    यूँ तो सारी रचना लाजवाब है राजीव जी पर ये पंक्तियाँ विशेष तौर पर मन को छू गयी | बहुत दिनों के बाद कुछ लिखा और बढिया लिखा | आशा है लेखन नियमित रहेगा |

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    1. धन्यवाद आपका रेणु जी। नियमित लेखन की कोशिश रहेगी।

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