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Thursday, 18 March 2021

#कश्मीर#

 #कश्मीर#


पोपलर के पेड़ से पनपती,

पहले प्यार सी पत्तियाँ ।

चिनार फैलाए बाँह,

ढकती सारी आपत्तियाँ ।


बर्फ़ की चादर में लिपटी,

कांगड़ी की ताप में तपती,

विस्तता* के विस्तार में,

सिमटी अनगिनत जिंदगियाँ ।


फैली मख़मली घांस हरी,

ग़लीचे से वादियों को ढकी,

चश्मों से झरती धार सफ़ेद,

बहा ले जाती सारी विपत्तियाँ ।


बाग़ थे बहार थी,

रेशम के धागों को बुनने,

ऊँगलियाँ तैयार थी।

होंठ थे गुनगुनाते,

कहानियाँ प्यार की,

उलझते ज़ुल्फ़ बयां करते,

अठखेलियाँ बयार की ।


उन्ही हाथों में अब,

मौत का सामान है,

नज़र उगलते ज़हर,

जुबाँ पे क़त्ल का पैग़ाम है ।


मंदिर की घंटियां चुपचाप हैं,

सीढ़ियाँ, सुनसान है शमशान सी

मस्जिदों की मीनारों से गूँजती,

कुछ तल्ख़ है आवाज़ अज़ान की ।


सूफ़ियाना गीत ग़ज़ले,

हैं दर बदर हैरान सी,

वाहबियों के बीच कश्मिरियत,

कराहती बेज़ान सी ।


अब काफ़िर क़रार हो चली,

पीर की मज़ार भी,

राँझे को नगुज़वार है,

हीर की ग़ुहार भी ।


इंतहा अब कहीं भी नहीं,

तेरे, मेरे, सबके सब्र की।

केसर की मेढ़े क़तार में,

अब  दिखती हैं क़ब्र सी ।


निगाहें ढूँढती है आज़ादी,

किनारों से हिजाब के ।

बोल होंठों से निकलते,

अब तौल के हिसाब से ।


ज़िहादी हो चली ज़िंदगी अब,

सुकून की तलाश में ।

मेरी कैफ़ियत संग है बची,

सिर्फ़ ज़ुनून बिखरती साँस में ।


कहीं से फिर लौट आएगा,

बहारों का वो कारवाँ ।

बुदबुदा रहीं है अब तक

धड़कने इसी आस में ।


*झेलम नदी*












10 comments:

  1. कहीं से फिर लौट आएगा,
    बहारों का वो कारवाँ ।
    बुदबुदा रहीं है अब तक
    धड़कने इसी आस में ।
    प्रिय राजीव जी यदि कहूँ आजके कश्मीर की
    बदहाली की ये तस्वीर शब्दों में महसूस कर निशब्द हूँ। मैंने कश्मीर नहीं देखा पर उसके वैभव की कहानियाँ सुनीं हैं। अब खत्म होती वो रवायतें कश्मीर के लिए घातक हैं तो उपद्रवियों के लिए विजय का भ्रम। कुछ लोगों की अति महत्वाँक्षाओं की बलि वेदी पर सिसकता कश्मीर उस पुराने वैभव में लौटेगा इसी का इंतजार सभी को है। आजकल कहाँ हैं आप? सकुशल रहिये, अपना ख्याल रखिये। आपकी कुशलता और यश की कामना करती हूँ। 💐💐🙏💐💐

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    1. सहृदय धन्यवाद आपका रेणु जी।

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  2. अंगिनित---- अगणित
    घाँस------- घास
    चस्मों_____ चश्मों
    हाँथो -- हाथों
    मस्जिदों के---- की
    तख़्ल तल्ख
    ये ठीक करके टिप्पणी मिटा दें


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    1. आभार त्रुटियों को इंगित करने के लिए।

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  3. जी धन्यवाद एवं आभार

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  4. सादर नमस्कार।

    कृपया १९ को २० पढ़े।

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  5. सुंदर हृदय स्पर्शी सृजन।

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  6. चलचित्र की भाँति खींच दिए आपने दृश्य ।
    कहाँ कितना प्यारा और स्वर्ग के समान था हमारा कश्मीर
    आज वहाँ के लोग कैसे रह रहे हैं , कितना ज़हर भरा है मन में ।
    भावुक कर देने वाली प्रस्तुति

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    1. धन्यवाद आपका कश्मीर का मर्म समझने के लिए।

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