# कब तक भला किसके लिए #
जमीं सारी बंजर पड़ी,
रास्ते काँटे भरे,
पर्वत सीना तान,
राह रोके खड़े हुए,
नदी भी इठलाती मचलती,
बहती रही,
रूकती नहीं एक पल के लिए,
वो लड़ता रहा सोचता रहा,
कब तक भला किसके लिए
लोगों की क्या बात करे,
सर्द हवायें भी दुदकार रही,
धरती पे कैसी ये जन्नत है,
हर वक़्त सिर्फ़ मौत,
पुकार रही,
बँधे हाथ और होंठ सिले,
वो लड़ता रहा सोचता रहा,
कब तक भला किसके लिए
अपने पराए की क्या पहचान,
घूरती निगाहें पहने नक़ाब,
पत्थरों का बारूद से,
क्या दे जवाब,
अपनी साँसों में
ज़िंदगी का भरोसा लिए,
वो लड़ता रहा सोचता रहा,
कब तक भला किसके लिए
निकला जब भी वर्दी पहने,
यही ख़याल रहता दिल में,
लौटे शायद जब अपने घर को,
तिरंगे में ना हों लिपटें,
क्षत विक्षत सारे सपने,
आशंकित सोच झटकते हुए
वो लड़ता रहा सोचता रहा
कब तक भला किसके लिए.......