बहुत सोचा करूँ कुछ ऐसा,
ज़माने भर में नाम हो जाए
राहें थी कई मुश्किलों से भरी,
आसान लगा मुल्क को बदनाम कर आए
कौन पूछेगा भला,
तिरंगा कंधों से होगा जो लगा
तलवों से कुचल लगा दूँ आग इसे,
कारनामे की चर्चा सरेआम हो जाए
कचहरी पे कसूँगा फबतियाँ,
दूँगा फ़ौज को रोज़ गालियाँ,
खाने के लाले अब तक थे पड़े,
ज़िंदगी शायद अब आसान हो जाए!!