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Wednesday 17 November 2021

 बहुत सोचा करूँ कुछ ऐसा,

ज़माने भर में नाम हो जाए 

राहें थी कई मुश्किलों से भरी,

आसान लगा मुल्क को बदनाम कर आए 


कौन पूछेगा भला,

तिरंगा कंधों से होगा जो लगा 

तलवों से कुचल लगा दूँ आग इसे,

कारनामे की चर्चा सरेआम हो जाए


कचहरी पे कसूँगा फबतियाँ,

दूँगा फ़ौज को रोज़ गालियाँ,

खाने के लाले अब तक थे पड़े,

ज़िंदगी शायद अब आसान हो जाए!!

2 comments:

  1. बहुत आसान है निज राष्ट्र को बदनाम कर खुद प्रसिद्ध हो जाना। वीरों के तिरंगे के कफ़न में लिपटआने की शान से ज्यादा प्रसिद्धि देश के छद्म शत्रुओं को तिरंगे को पैरों नीचे रौंदने से मिल जाती है। कितना बड़ा दुर्भाग्य है राष्ट्र का कि चर्चा आम और खुद को लाइम लाइट में लाने के लिए राजनीति की जगह टटोलते अराजक तत्व कुछ भी कर सकते हैं। यानि कुछ भी। आपकी सरल रचना बहुत कुछ कह गई। जीई

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  2. पर ये हमारे तंत्र की क्या विवशता है कि इन जैसे तत्वों पे अंकुश नहीं लगा पा रही।

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