# तमाशबीन #
तमाशबीन बन ये
मुस्कुराते चेहरे,
मेरे गर्दिश का
जश्न मना रहे ।
मेरी आँखों में
बसे रहने को,
आतुर थे जो,
आज मेरे साये से
भाग रहे नज़रें चुराए ।
वो हैं अभी भूले,
कि मेरे तराशे हुए,
पत्थरों की गर्द,
बेशक़ीमती है
उनके रत्नो से,
हथेली में ज़ब्त
पसीने की महक,
खींच लाएगी
गुमी बूलन्दी सपनों से ।
जो कल तक था मेरा,
फिर से लौट आएगा,
कोई गुमान नहीं
यक़ीं का सहारा है,
फिर से मेरी आँखों की चमक,
दिखाएगी राह ज़िंदगी को,
ये ज़िद मेरी है
और ये साथ तुम्हारा है ।
ओझल हुए साये को,
धूप सुबह की,
फिर से नए
आकार देगी,
मेरे भटके हुए
अंधेरे रास्तों को,
जुगनू तेरे दामन के
सवाँर देंगे ।
लौटूँगा मैं बनकर,
फिर से दरवाज़े की दस्तक,
तू इस बार भी खड़ा होगा
तमाशबीन बना,
इंतज़ार में मेरे तत्पर ।
लौटूँगा मैं बनकर,
ReplyDeleteफिर से दरवाज़े की दस्तक,
तू इस बार भी खड़ा होगा
तमाशबीन बना,
इंतज़ार में मेरे तत्पर ।
बहुत खूब प्रिय राजीव !