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Wednesday, 21 November 2018

# तमाशबीन #

तमाशबीन बन ये
मुस्कुराते चेहरे,
मेरे गर्दिश का 
जश्न मना रहे

मेरी आँखों में
बसे रहने को,
आतुर थे जो,
आज मेरे साये से 
भाग रहे नज़रें चुराए

वो हैं अभी भूले,
कि मेरे तराशे हुए,
पत्थरों की गर्द,
बेशक़ीमती है 
उनके रत्नो से,
हथेली में ज़ब्त 
पसीने की महक,
खींच लाएगी 
गुमी बूलन्दी सपनों से

जो कल तक था मेरा,
फिर से लौट आएगा,
कोई गुमान नहीं 
यक़ीं का सहारा है,
फिर से मेरी आँखों की चमक,
दिखाएगी राह ज़िंदगी को,
ये ज़िद मेरी है 
और ये साथ तुम्हारा है

ओझल हुए साये को,
धूप सुबह की,
फिर से नए 
आकार देगी,
मेरे भटके हुए 
अंधेरे रास्तों को,
जुगनू तेरे दामन के 
सवाँर देंगे

लौटूँगा मैं बनकर,
फिर से दरवाज़े की दस्तक,
तू इस बार भी खड़ा होगा
तमाशबीन बना,
इंतज़ार में मेरे तत्पर









1 comment:

  1. लौटूँगा मैं बनकर,
    फिर से दरवाज़े की दस्तक,
    तू इस बार भी खड़ा होगा
    तमाशबीन बना,
    इंतज़ार में मेरे तत्पर ।
    बहुत खूब प्रिय राजीव !

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