न ख़ुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम
अब कह ही दो,
तुम किस तरफ़ हो ?
शामिल हो
गर्दिश में मेरे,
या बेपरवाह
यूँ ही खड़े हो ?
कुछ बातें बाँटी थी
ख़िलाफ़ ख़ुदा के,
कल तुमसे,
भरोसे के साथ
कि दिल में तेरे,
वे रहेंगी दफ़न
अब गूँज रहे हैं
ज़माने भर में,
हर हर्फ़
उस गुफ़्तगू के,
मुझे तो,
न ख़ुदा ही मिला
न विसाल-ए-सनम
मन की मन से बात कहती रचना | बहुत खूब प्रिय राजीव जी |
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