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Monday, 4 March 2019

# कब तक भला किसके लिए #

जमीं सारी बंजर पड़ी,
रास्ते काँटे भरे,
पर्वत सीना तान,
राह रोके खड़े हुए,
नदी भी इठलाती मचलती,
बहती रही,
रूकती नहीं एक पल के लिए,
वो लड़ता रहा सोचता रहा,
कब तक भला किसके लिए

लोगों की क्या बात करे,
सर्द हवायें भी दुदकार रही,
धरती पे कैसी ये जन्नत है,
हर वक़्त सिर्फ़ मौत,
पुकार रही,
बँधे हाथ और होंठ सिले,
वो लड़ता रहा सोचता रहा,
कब तक भला किसके लिए

अपने पराए की क्या पहचान,
घूरती निगाहें पहने नक़ाब,
पत्थरों का बारूद से,
क्या दे जवाब,
अपनी साँसों में
ज़िंदगी का भरोसा लिए,
वो लड़ता रहा सोचता रहा,
कब तक भला किसके लिए

निकला जब भी वर्दी पहने,
यही ख़याल रहता दिल में,
लौटे शायद जब अपने घर को,
तिरंगे में ना हों लिपटें,
क्षत विक्षत सारे सपने,
आशंकित सोच झटकते हुए
वो लड़ता रहा सोचता रहा
कब तक भला किसके लिए.......





13 comments:

  1. बहुत सुंदर, मर्म को स्पर्श करती और पाठकों के दिलोदिमाग को आंदोलित करती! बधाई और आभार, राजीवजी।

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    1. This comment has been removed by the author.

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    2. हृदय से आभार सर

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  2. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/03/112.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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    1. धन्यवाद राकेश जी प्रोत्साहित करने के लिए

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  3. वो लड़ता रहा सोचता रहा
    कब तक भला किसके लिए.......
    सच कहा आपने "कब तक और किसके लिए "बेहद मर्मस्पर्शी रचना ,सादर नमन

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    1. आभार कामिनी जी

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  4. वाहह्हह.. लाजवाब शानदार सृजन राजीव जी👌

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    1. धन्यवाद स्वेता जी

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  5. बहुत सुंदर रचना

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    1. धन्यवाद अनुराधा जी

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  6. बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति एक सैनिक के अंतस की विचलित मनोदशा की | सचमुच किसके लिए लड़ता है सैनिक और किसके खिलाफ़ ? मानवीय दृष्टि से सब प्रश्न बहुत विकल करने वाले हैं |

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  7. धन्यवाद रेणु जी एक सैनिक के मर्म को समझने के लिए

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