कुछ मसले कभी हल नहीं होते
दिल में कसक सी रह जाती है
बस माथे पे बल नहीं पड़ते
टूटता है बिखरता है
फिर मचल पड़ता है
दिल की साज़िशों में ख़लल नहीं पड़ते
रोटी कपड़ा मकान
फ़ेहरिस्त में ये भी शामिल है
मेरे ख़्वाबों में तुम ही हर पल नहीं रहते
जो रह गए गिले शिकवे
आओ आज अभी निपटा ले
मेरे तारीख़ के पन्नो में कल नहीं रहते
दिन के उजालों की
दोस्ती रही हमारी
हम उनकी नींदों में दख़ल नहीं देते
मिलते है जब भी
मुस्कुरा देते हैं यूँ ही
हम आज भी उनके ख़यालों में बसर नहीं करते
बेपरवाह अंजाम से
फ़ैसला कर ही लेते हैं
हम अब जगहँसाई की फ़िकर नहीं करते
कुछ मसले कभी हल नहीं होते
दिल में कसक सी रह जाती है
बस माथे पे बल नहीं पड़ते
लाजवाब।
ReplyDeleteजी शुक्रिया
Deleteजो रह गए गिले शिकवे
ReplyDeleteआओ आज अभी निपटा ले
मेरे तारीख़ के पन्नो में कल नहीं रहते
वाह ! प्रिय राजीव जी आज बहुत दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ | शायद गूगल प्लस जाने के बाद पहली बार | बहुत लाजवाब तरीके से आपने मन के जज़बात समेटे हैं | हार्दिक शुभकामनायें |
धन्यवाद रेणु जी मेरी रचना को मान देने की लिए।
Deleteबहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार।
Deleteसहृदय धन्यवाद मेरी रचना को "सांध्य दैनिक मुख़रित मौन में" में साझा करने के लिए ।
ReplyDeleteवाह!!! बहुत सुंदर।
ReplyDeleteधन्यवाद सर
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