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Thursday, 5 September 2019


कुछ मसले कभी हल नहीं होते
दिल में कसक सी रह जाती है
बस माथे पे बल नहीं पड़ते

टूटता है बिखरता है 
फिर मचल पड़ता है
दिल की साज़िशों में ख़लल नहीं पड़ते 

रोटी कपड़ा मकान 
फ़ेहरिस्त में ये भी शामिल है 
मेरे ख़्वाबों में तुम ही हर पल नहीं रहते

जो रह गए गिले शिकवे
आओ आज अभी निपटा ले 
मेरे तारीख़ के पन्नो में कल नहीं रहते 

दिन के उजालों की
दोस्ती रही हमारी 
हम उनकी नींदों में दख़ल नहीं देते 

मिलते है जब भी
मुस्कुरा देते हैं यूँ ही
हम आज भी उनके ख़यालों में बसर नहीं करते 

बेपरवाह अंजाम से
फ़ैसला कर ही लेते हैं
हम अब जगहँसाई की फ़िकर नहीं करते

कुछ मसले कभी हल नहीं होते
दिल में कसक सी रह जाती है
बस माथे पे बल नहीं पड़ते





9 comments:

  1. जो रह गए गिले शिकवे
    आओ आज अभी निपटा ले
    मेरे तारीख़ के पन्नो में कल नहीं रहते
    वाह ! प्रिय राजीव जी आज बहुत दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ | शायद गूगल प्लस जाने के बाद पहली बार | बहुत लाजवाब तरीके से आपने मन के जज़बात समेटे हैं | हार्दिक शुभकामनायें |

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    1. धन्यवाद रेणु जी मेरी रचना को मान देने की लिए।

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  2. बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति

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    1. बहुत बहुत आभार।

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  3. सहृदय धन्यवाद मेरी रचना को "सांध्य दैनिक मुख़रित मौन में" में साझा करने के लिए ।

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  4. वाह!!! बहुत सुंदर।

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  5. धन्यवाद सर

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