ख़ामोशियों का शोर
ख़ामोशियों ने शोर कर रखा है
अंधेरों ने भोर कर रखा है
टूट के बिखर जाता मैं कब का
रुसवाइयों ने दिल जोड़ कर रखा है
मजबूरियों को तो छोड़ दिया कब के
चाहतों ने कमजोर कर रखा है
ख्वाब मुझे सोने नहीं देते और
हकीकतों ने मदहोश कर रखा है
दुश्मनों में कहाँ इतनी संजीदिगी
अपनों ने सितम बेजोड़ कर रखा है
दवाओं से जख्म हरे हुए जाते है
और दवाओं ने बेहोश कर रखा है
फ़क़त खुद से खुद की पर्दादारी है
वैसे तमाशा तो अब हर और हो रखा है
ज़िन्दगी मुँह छुपाती फिर रही यंहा
कातिलों ने खुद को सरफ़रोश कर रखा है
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