# मैं #
शिखर का दम्भ नहीं भरता हूँ,
मैं आसमान में ही रहता हूँ ।
पंखों की होगी तुम्हें ज़रूरत,
मैं ख़्वाबों के दम पे उड़ता हूँ ।
पुष्प-सितारे, समेट लो तुम सारे,
मैं अग्नि ज्वाल माल से सजता हूँ ।
रहे दहकता सूरज भर दिन,
मैं सीने की आग में जलता हूँ ।
लोक लाज सब तज आया,
जो दिल में है वही कहता हूँ ।
तुम अश्रु बिंद छुपाए फिरते हो,
मैं श्रावण मेघ सा बरसता हूँ ।
संगमरमर महलों वाले,
क़ब्रों पे भी है चिपके हैं ।
करके नभ को नाम अपने,
मैं नीड़ तिनकों से बुनता हूँ ।
बाट जोहते तुम जुगनुओं की,
मैं उजाले संग लिए चलता हूँ ।
चाहत किरणों की होगी तुमको,
मैं अपनी रौशनी में दमकता हूँ ।
क्षण भंगुर, सब काल आसरे,
कहाँ मैं सर्व नाश से डरता हूँ ।
साथ सफ़र में कोई नहीं अब,
मैं अपनी ही धुन में रहता हूँ ।
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