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Saturday, 15 September 2018


# मैं #


शिखर का दम्भ नहीं भरता हूँ,

मैं आसमान में ही रहता हूँ ।
पंखों की होगी तुम्हें ज़रूरत,
मैं ख़्वाबों के दम पे उड़ता हूँ ।

पुष्प-सितारे, समेट लो तुम सारे,

मैं अग्नि ज्वाल माल से सजता हूँ ।
रहे दहकता सूरज भर दिन,
मैं सीने की आग में जलता हूँ ।

लोक लाज सब तज आया,

जो दिल में है वही कहता हूँ ।
तुम अश्रु बिंद छुपाए फिरते हो,
मैं श्रावण मेघ सा बरसता हूँ ।

संगमरमर महलों वाले,

क़ब्रों पे भी है चिपके हैं ।
करके नभ को नाम अपने,
मैं नीड़ तिनकों से बुनता हूँ ।

बाट जोहते तुम जुगनुओं की,

मैं उजाले संग लिए चलता हूँ ।
चाहत किरणों की होगी तुमको,
मैं अपनी रौशनी में दमकता हूँ ।

क्षण भंगुर, सब काल आसरे,

कहाँ मैं सर्व नाश से डरता हूँ ।
साथ सफ़र में कोई नहीं अब,
मैं अपनी ही धुन में रहता हूँ ।









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