#कुछ नहीं कहीं भी#
नए सृजन की आस लिए
पुराना सब तोड़ आया हूँ
पत्थरों के ढेर पे बैठा हूँ
तराशने के औज़ार छोड़ आया हूँ
नया ना कुछ बन पाया
पुराने का कुछ बचा नहीं है
ज़िन्दगी बेतहाशा बीत रही
मक़सद का कुछ पता नहीं है
सारा सागर मथ लिया
विष अमृत की दो बूँदे भी न मिली
गागर प्याले सब ख़ाली हैं
शिव का भी कुछ पता नहीं है
रातों को आँखों में गुज़ारा
हर हर्फ़ को सीने में उतारा
ख़त में मेरा ज़िक्र तो होगा
या मुझसे अब कोई ख़फ़ा नहीं है
मुस्कुराहट पहचान की
हर चेहरे से टपक रही
नाम मेरा उन्हें याद तो होगा
या अंजामे इश्क़ अब वफ़ा नहीं है
न जाने कब से धड़क रहा था
तेरी ख़ुशबू में बहक रहा था
बेपरवाह यूँ ही हथेली पे रख दिया
दिल टूटने में तुम्हारी ख़ता नहीं है
घूमतीं हुई बेचैन बोझिल निगाहे
टिकी चेहरे पे तेरे पल भर के लिए
ढूँढता फिर रहा हर भीड़ में तुझ को
उस रोज़ से अब तक कोई जँचा नहीं है
ख़बर न थी ऐसे गुम हो जाएगी
ख़्वाबों में आने से भी कतराएगी
तुझे दूँ क्या भेंट अंतिम विदाई में
पास मेरे अब कुछ बचा नहीं है
(2018)
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