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Saturday, 11 August 2018

#तेरे उत्तर का इन्तज़ार है#

स्थान का कोई मोह नहीं
स्वयं ही पहचान हूँ
ज़िंदगी की राह में अबतक 
मंज़िल से क्यूँ अनजान हूँ

अंधकार हूँ या फिर 
पुंज हूँ प्रकाश का
शून्य हूँ या फिर
देव हूँ विश्वास का

क्यूँ हूँ कौन हूँ
गूढ़ ये प्रश्न है
ज़िंदगी का अंत है
या मौत की शुरुआत है

रात की विरानीयों में
शोर कैसा प्रभात का
स्वप्न है या बोध है
जीवन के यथार्थ का

अभिमान मेरा ध्वंस है क्यूँ
क्यूँ धूमिल पड़ी है रौशनी
स्वर का संगीत भी क्यूँ 
सिर्फ़ इर्द मेरे घूमती

इल्ज़ाम थोपती उँगलियों में
क्यूँ एहसास नहीं कम्पन नहीं
ज़िंदगी जो गुज़री है अबतक
क्यूँ दरिद्र किया संपन्न नहीं

आह की आवाज़ भी क्यूँ 
कानो को अब नहीं भेदती
रौशनी जो आँखों में थी
किरणों सी क्यूँ चुभ रही

मैं कहाँ था अब कहाँ हूँ
मेरा क्यूँ अस्तित्व है
कौन हूँ मैं चला जा रहा कहाँ
अभिमान का मेरे क्या अभिप्राय है

क्या हश्र होना है मेरा
इस अंधकार के परे
सर्वश समाप्त होने के पश्चात 
फिर कहाँ शुरुआत है

प्रश्नों की भरमार है

तेरे उत्तर का इन्तज़ार है

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