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Thursday, 9 August 2018

#  कुछ न था तो सब था #

ज़िंदा हूँ जीने की वजह मत पूछ
मर गया होता गर तुमने कहा होता

आँसुओं से गिली हैं दीवारें दिल की
सीने में आग होती तो जल गया होता

बयाँ हो कैसे मेरे बिखेर हुए जज़्बात
आँखों को ज़ुबा होती तो कह दिया होता

उम्मीदों के साथ साथ भरोसे की बात है
पत्थरों का होता बोझ तो सह लिया होता

मेरे आशियाने में छत, दरो दीवार नहीं
ख़्वाबों की होती बात तो संग रह लिया होता

जुर्रत कहाँ है ख़ुद को समझाने की
ज़माने की  होती बात तो लड़ लिया होता

               

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