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Monday, 27 August 2018


#बेख़बर सफ़र में#

हम तो उस सफ़र में हैं 
जहाँ कोई हमसफ़र नहीं
क्या पूछते हो बात उनकी 
यहाँ हमें अपनी ख़बर नहीं

चुँधियाती है नज़र रौशनी में अब
अंधेरे उजालों से कोई कमतर नहीं
ज़िंदगी सिर्फ़ जुस्तजु, ज़ुनून, ज़ुल्म
मौत अब इतनी भी बदतर नहीं

उमड़ उठा है सैलाब दर्द का
ज़ख़्म मेरे सीने के भरे नहीं
तैयार बैठी हैं रोने को आँखें
दो बूँद आँसू भी मयस्सर नहीं

यक़ीन था तुझे जिस दुआ पे
बेजान पड़ी है तुझे ख़बर नहीं
फ़ना हो जाए बस एक नज़र से
तेरी निगाहों में अब वो असर नहीं

उजड़ा ठिकाना यहाँ से भी मेरा
जाऊँगा कहाँ कोई  फ़िकर नहीं
नज़रों में हया का बसेरा था जहाँ
अफ़सोस बचा अब वो शहर नहीं

                 (2018)

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