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Wednesday, 15 August 2018

#शहादत का सच#

जो सरदार थे 
वो वीर हो गए
सिपाही वहीं कहीं 
शहीद हो गए
कुछ इस अदा से 
सुनाई कहानी
उस रणछोर के 
सब मुरीद हो गए 

जो गोलियों से 
बच गए
वो व्यंग्य से 
घायल हुए
जो तमाशबीन बन 
खड़े रहे
तमाशे के उनके 
सब क़ायल हुए

रात को किया 
रौशन जिसने
भूले सब उसको 
होते ही भोर
छुपा था बिल में 
अंधेरे से डर के
अब घूम रहा 
बन सूरज चारों ओर

पहुँचा है  जो सच
ज़माने तक
उनकी है ज़ुबाँ
जो नहीं थे वहाँ
पर जिसे परवाह नहीं
हो जान की
उसे फ़िक्र क्या 
काग़ज़ों पे छपे नाम की

इतना है कि बहे ख़ून के
हर क़तरे में छुपी
कितनी ही अनकही
अनसुनी कहानियाँ है
महफ़िलें जो आज 
रौशन है तेरे आगे 
पीछे ना जाने 
कितनो की लुटी जवानियाँ  

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